जिला ब्यूरो चीफ संदीप दीक्षित
बाँदा। बुंदेलखंड में चिकित्सा क्रांति: बाँदा मेडिकल कॉलेज ने बचाई मासूम की जान बिना ऑपरेशन क रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज में पहली बार एंडोस्कोपिक तकनीक से बच्चे के फेफड़े से निकाली गई बाँदा। बुंदेलखंड की धरती पर चिकित्सा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक चमत्कार दर्ज हुआ है। बाँदा स्थित रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने पहली बार बिना चीरा लगाए एंडोस्कोपिक तकनीक से एक आठ वर्षीय मासूम के फेफड़े में फंसी सीटी को सफलतापूर्वक बाहर निकालकर न केवल उसकी जान बचाई, बल्कि मेडिकल कॉलेज और पूरे बुंदेलखंड की प्रतिष्ठा को नई ऊँचाई प्रदान की। यह अभूतपूर्व सफलता उन संसाधनों और क्षेत्रों में संभव हुई है, जहाँ आमतौर पर ऐसे जटिल ऑपरेशन बड़े महानगरों के सुपर-स्पेशियलिटी अस्पतालों तक ही सीमित माने जाते हैं।
पन्ना के मासूम की जान सांसत में
घटना मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के पवारा गांव की है। एक आठ वर्षीय बच्चा खेलते-खेलते सीटी जैसी दिखने वाली एक सीवी निगल गया। सीटी शरीर में होते हुए सीधे फेफड़े तक पहुँच गई। कुछ ही समय में बच्चे को साँस लेने में गंभीर कठिनाई होने लगी, खांसी और बेचैनी बढ़ गई। परिजन पहले स्थानीय स्तर पर डॉक्टरों के पास पहुँचे, लेकिन जब स्थिति नियंत्रित नहीं हुई, तो बच्चे को बाँदा मेडिकल कॉलेज लाया गया।
ENT विभाग ने दिखाया अद्वितीय कौशल
मेडिकल कॉलेज के ENT विभागाध्यक्ष एवं कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. भूपेन्द्र सिंह ने एक्स-रे और जांचों के आधार पर तत्काल यह पहचान लिया कि सीटी फेफड़े की ब्रोंकस (श्वासनली) में फंसी है। यह स्थिति अत्यंत संवेदनशील थी, क्योंकि बैटरी में मौजूद रसायन फेफड़े की कोशिकाओं को क्षति पहुँचा सकते थे।
परंपरागत तरीके से इस सीटी को निकालने के लिए छाती में चीरा लगाकर ओपन सर्जरी करनी पड़ती, जिससे छोटे बच्चे की जान को जोखिम होता। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए डॉ. भूपेन्द्र सिंह ने एंडोस्कोपिक तकनीक के माध्यम से बिना किसी चीरा लगाए सीटी निकालने का साहसिक निर्णय लिया।
टीमवर्क और तकनीकी दक्षता का अद्वितीय उदाहरण
ऑपरेशन थिएटर में डॉ. भूपेन्द्र सिंह के नेतृत्व में बनी बहु-विभागीय टीम — जिसमें डॉ. सुशील पटेल, डॉ. प्रिया दीक्षित, डॉ. संदीप, डॉ. विकास, डॉ. आकाश और एनेस्थीसिया विभाग के विशेषज्ञ शामिल थे — ने बिना समय गंवाए ऑपरेशन शुरू किया। एंडोस्कोपिक ब्रोंकोस्कोपी तकनीक से बैटरी को श्वासनली से सुरक्षित बाहर निकाला गया। इस पूरी प्रक्रिया में न तो चीरा लगाया गया और न ही कोई टांका — जिससे न केवल दर्द रहित इलाज हुआ, बल्कि बच्चे की जान भी बच गई।
प्राचार्य ने दी बधाई, क्षेत्र में हर्ष
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एस. के. कौशल ने पूरी टीम को बधाई देते हुए इसे कॉलेज के इतिहास की एक बड़ी उपलब्धि बताया। उन्होंने कहा कि यह ऑपरेशन दर्शाता है कि बाँदा जैसे स्थान पर भी उच्च स्तर की चिकित्सकीय सेवाएँ उपलब्ध हैं और जटिल से जटिल केस भी सफलतापूर्वक सम्भाले जा सकते हैं।
कॉलेज प्रशासन, चिकित्सकों और जनपदवासियों में इस उपलब्धि को लेकर हर्ष है। मेडिकल जगत में यह केस अब एक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है, जहाँ सीमित संसाधनों में भी विशेषज्ञता और समर्पण के दम पर बड़ी से बड़ी चुनौतियों को पार किया जा सकता है।
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